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आद्य रथं॑ भानुमो भानु॒मन्त॒मग्ने॒ तिष्ठ॑ यज॒तेभिः॒ सम॑न्तम्। वि॒द्वान्प॑थी॒नामु॒र्व१॒॑न्तरि॑क्ष॒मेह दे॒वान्ह॑वि॒रद्या॑य वक्षि ॥११॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ādya ratham bhānumo bhānumantam agne tiṣṭha yajatebhiḥ samantam | vidvān pathīnām urv antarikṣam eha devān haviradyāya vakṣi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। अ॒द्य। रथ॑म्। भा॒नु॒ऽमः॒। भा॒नु॒ऽमन्तम्। अग्ने॑। तिष्ठ॑। य॒ज॒तेभिः॑। सम्ऽअ॑न्तम्। वि॒द्वान्। प॒थी॒नाम्। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। आ। इ॒ह। दे॒वान्। ह॒विः॒ऽअद्या॑य। व॒क्षि॒ ॥११॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:1» मन्त्र:11 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:13» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:1» मन्त्र:11


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (भानुमः) कान्तिवाले (अग्ने) विद्वन् ! आप (इह) यहाँ (अद्य) इस समय (यजतेभिः) प्राप्त हुए घोड़े आदिकों से संयुक्त (समन्तम्) सब प्रकार दृढ़ अवयवोंवाले (भानुमन्तम्) कान्तियुक्त (रथम्) सुन्दर वाहन पर (आ) अच्छे प्रकार (तिष्ठ) विराजिये इससे (विद्वान्) विद्यायुक्त आप (पथीनाम्) मार्गों के (उरु) व्यापक (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष को और (हविरद्याय) खाने योग्य अन्न आदि के लिये (देवान्) विद्वान् अतिथियों को जिससे (आ, वक्षि) अच्छे प्रकार पहुँचाते हो, इससे हम लोगों से सत्कार करने योग्य हो ॥११॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थों को चाहिये कि दूर स्थित भी उत्तम अतिथियों को उत्तम वाहनों पर बैठाकर उपदेश के लिये लावें और अन्न आदि से उनका सत्कार करें ॥११॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे भानुमोऽग्ने ! त्वमिहाद्य यजतेभिस्सह समन्तं भानुमन्तं रथमा तिष्ठ तेन विद्वांस्त्वं पथीनामुर्वन्तरिक्षं हविरद्याय देवान् यत आ वक्षि तस्मादस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (अद्य) इदानीम् (रथम्) रमणीयं यानम् (भानुमः) भानवन् (भानुमन्तम्) दीप्तिमन्तम् (अग्ने) विद्वान् (तिष्ठ) (यजतेभिः) सङ्गतैरश्वादिभिः संयुक्तम् (समन्तम्) सर्वतो दृढाङ्गम् (विद्वान्) (पथीनाम्) मार्गाणाम् (उरु) व्यापकम् (अन्तरिक्षम्) (आ) (इह) (देवान्) विदुषोऽतिथीन् (हविरद्याय) अत्तुं योग्यायाऽन्नाद्याय (वक्षि) वहसि ॥११॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थैर्दूरस्थानप्युत्तमानतिथीनुत्तमेषु यानेषु संस्थाप्योपदेशायाऽऽनेया अन्नादिना सत्कर्त्तव्याश्च ॥११॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गृहस्थानी दूर असलेल्या उत्तम अतिथींना उत्तम वाहनात बसवून उपदेशासाठी आणावे व अन्न इत्यादींनी त्यांचा सत्कार करावा. ॥ ११ ॥